Thursday, November 4, 2010

Shubh Dipawali

प : क्या अ कब से मैंने बोला रखा है लड़ी लगाने को , सबके घर जगमगा रहे हैं कल से. चलो जल्दी से लगा दो . देखो जो भी पैसा लगे ले लो पर कुछ अलग दिखाना  चैये मेरा घर दिवाली में .
अ  : ठीक है मेम साहब २०० रूपया लगेगा .
प: छिड़ते हुए , पर बगल में ही तो तुमने १५० में किया है.
अ: पर आपको ही अलग चाहिए था न ?
फिर प ने सोचा की २०० दे ही रही हूँ तो जितना काम हो सके करवा लेती हूँ . फिर प ने अ को दिन भर बहुत तंग किया जब तक की उसे विश्वाश न हुआ की उसके यहाँ का सजावट सबसे अच्छा है.

आज दिवाली है और प फूले न समां रही है . उसका घर सबसे अच्छा लग रहा है और चमचमा रहा है.
अ के लिए यह एक आम दिन है .वोह दिवाली में थोडा ज्यादा कमा लेता है और उसमे से बड़ा हिस्सा वोह आगे के लिए बचा कर रखता है. कल शाम को लौटते वक़्त वोह बस्ती के बच्चों के लिए कुछ मिठाई और पठाके ले आया है. पर सब के घर को सजाने वाले ने खुद के घर के लिए कुछ नहीं किया है. वास्तव में वहाँ बिजली ही नहीं है .

पर शायाद अ को जरूरत नहीं है रोशिनी की . उसके अन्दर का दीपक जल चूका है .

इस दिवाली विज्ञापनों के चकाचोंध से बहार निकल , बाहरी चमक धमक को भुला कर कुछ समय अपने लिए निकालो , मनन में थोडा प्यार जगाओ , घर में दिया तो जलाओ पर अपने अन्दर को अँधेरे में न रखो. कुछ ऐसा करो जो आजतक किसी दिवाली में न किया , चलो बहार निकलो , थोडा प्यार बांटो.


May Your awareness of the inner light be at work now and throughout the coming year.

1 comment:

bhale said...

Happy Diwali sire!